इंटरनेट डेस्क। ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के मुताबिक देश भर में तकनीकी संस्थानों से ग्रेजुएट होने वाले आठ लाख इंजीनियरों में से 60% से अधिक बेरोजगार रहते है। इतना ही नहीं बल्कि देशभर में राष्ट्रीय मान्यता बोर्ड (एनबीए) द्वारा मान्यता प्राप्त 3,200 से अधिक संस्थानों द्वारा प्रदान किए जाने वाले इंजीनियरिंग कार्यक्रमों में मात्र 15% और इंटरनशिप में मात्र 1 प्रतिशत छात्र ही भाग लेते है। ये सब आंकड़े देश के तकनीकी कॉलेजों में मानकों में बड़े अंतर को दर्शाता है जहां से निकलने वाले अधिकतर ग्रेजुएट छात्र रोजगार योग्य नहीं होते है।

सामान्यत: यह देखा गया है कि अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद भी कई इंजीनियरिंग छात्र कम से कम 6 महीने या एक साल की ट्रेनिंग किये बिना नौकरी करने में सक्षम नहीं होते है और कंपनियों को ये बोझ लगता है इसलिए वे फ्रेशर्स को अनुभव के बिना नौकरी नहीं देने की बात कहते हुए साइड कर देते है।

भारत में लगभग 4000 इंजीनियरिंग कॉलेज है जहां से हर साल लगभग 10 लाख इंजीनियर छात्र ग्रेजुएट होते है लेकिन अगर नौकरियों की तुलना में बात की जाए तो हर एक नौकरी के लिए 300 लोग प्रतियोगिता में रहते है। और पिछले साल बेरोजगार रहे छात्रों की वजह से यह अनुपात और भी बढ़ जाता है।

जहां तक तरफ तकनीक में निरंतर विकास और बदलाव हो रहा है लेकिन कॉलेजों में पढ़ाया जाने वाला कोर्स इसके अनुसार नहीं बदलता है। इसलिए इंजीनियरिंग छात्र 10 साल पुराने सिलेबस के साथ प्रतियोगिता में टिक नहीं पाते है।

इसके अलावा हाल ही में भारत में तेलंगाना राज्य में इंजीनियरिंग पढ़ाने वाले लगभग 900 शिक्षक फर्जी निकले हैं। साथ ही कई अन्य राज्यों में भी इंजीनियरिंग पढ़ाने वाले कई शिक्षक भी कुशल नहीं है। यहां तक कि कॉलेजों द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाएं बिल्कुल संतोषजनक नहीं है।

इस प्रवृत्ति को कम करने के लिए, मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत की तकनीकी शिक्षा के एक बड़े सुधार की योजना बना रहा है। इस योजना में जनवरी 2018 से तकनीकी संस्थानों के लिए सिंगल नेशनल एंट्रेंस एग्जाम शुरू करना, संस्थान की मंजूरी के लिए जरूरी वार्षिक शिक्षक प्रशिक्षण, नामांकित छात्रों को अनिवार्य इंडक्शन ट्रेनिंग और कोर्स में हर साल संशोधन करना शामिल है।

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