राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था कि "वह परिवर्तन बनें जिसे आप दुनिया में देखना चाहते है।" उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के खारडिया गांव के एक किसान, केशव सरन ने लोगों के सामने खुद को उसी बदलाव के रूप में पेश किया है। केशव को 1988 में उनके गांव के प्रधान के रूप में चुना गया था। अपने गांव के विकास की दिशा में बेहद समर्पित, केशव ने उन सभी अधिकारियों तक पहुंचने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जो कि उनके गाँव को मुलभुत सुविधाएं दे सकते थे।

हालांकि, बाद में केशव को एहसास हुआ कि अगर वह भी उन अधिकारियों जितने शिक्षित होते तो वह भी बहुत कुछ हासिल करने में सक्षम होते। इस बात से उनके लिए यह स्पष्ट हो गया कि शिक्षा का मतलब शक्ति है। इस सोच के साथ 11वीं पास एक किसान केशव ने अपने गांव के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित करने के लिए अपना मिशन शुरू किया। इसके लिए उन्होंने अपने गाँव में रात्रि कक्षाओं की शुरुआत की। उस समय केशव को पता चला कि गाँव के लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए नहीं भेजते है।

चूंकि उन दिनों गांव में कोई स्कूल नहीं था, इसलिए वे अपनी 3 बेटियों और एक बेटे को साइकिल से 6 से 7 किमी दूर एक स्कूल में लेकर जाते थे लेकिन उन्हें लगा कि गाँव में कोई भी दूसरा व्यक्ति अपने बच्चों के लिए ऐसा नहीं करेगा। इसके बाद उन्होंने अपने रात्रि स्कूल में पढ़ने वाले लोगों से अपने बच्चों को दिन के समय स्कूल में पढ़ने के लिए भेजने के लिए कहा। हालाँकि पहले दिन सिर्फ 3 छात्र ही पढ़ने के लिए आये थे।

लेकिन इसके बावजूद केशव ने इन छात्रों को पढ़ाना जारी रखा और गाँव के लोगों के पास जाकर बच्चों को पढ़ने के लिए भेजने के लिए कहा। जुलाई 1990 तक केशव के स्कूल में 150 छात्रों का प्रवेश हो चुका था लेकिन स्कूल बनाने के लिए अधिकारियों से कोई मदद नहीं मिलने के कारण वे इन छात्रों को गाँव की चौपाल पर पढ़ाते थे।

हालाँकि बाद में छात्रों की बढ़ती हुई संख्या को देखकर केशव ने अपनी पैतृक जमीन पर स्कूल का निर्माण किया और बाद में स्थानीय मंत्री की मदद से स्कूल का रजिस्ट्रेशन करवाया। आज इस स्कूल को 'जूनियर हाईस्कूल' के रूप में मान्यता मिल चुकी है और इसे 'केशव इंटर कॉलेज' कहा जाता है जहाँ 670 लड़कियों सहित 1,320 छात्र पढ़ते है।

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