इंटरनेट डेस्क। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी), जो कि जमशेदजी नुसरवानजी टाटा के दिमाग की उपज थी जिसको 1896 में शुरु किया गया था जिसके बाद 27 मई, 1909 इसे एक संस्थान का दर्जा दिया गया जिसमें 13 साल लग गए।

शुरूआत में यह संस्थान केवल दो विभागों एप्लाइड कैमिस्ट्री और इलेक्ट्रो-टेक्नोलॉजी के साथ शुरू किया गया था। इसके बाद जल्द ही, कार्बनिक रसायन विज्ञान और जैव रसायन विभागों की भी स्थापना की गई। अपनी स्थापना के बाद से ही आईआईएससी साइंस और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में आज भारत का प्रमुख केंद्र बन गया है।

संस्थान 400 एकड़ के एक विशाल कैंपस में फैला हुआ है जो कि मार्च 1907 में मैसूर के महाराजा ने जमीन दी थी। दरअसल, मैसूर की रियासत का जेएन टाटा के प्रस्तावित इस संस्थान को बनाने में बहुत ही बड़ा योगदान हैं।

उनके सहयोग से क्षेत्र में रिसर्च के में काफी तेजी आई और पांच साल से भी कम समय में, नासिक में एक एसीटोन फैक्ट्री सहित छह कारखानों की शुरूआत की गई। हैदराबाद (सिंध) में एक थाइमोल कारखाना, बैंगलोर में बांस से स्ट्रॉबोर्ड बनाने के लिए एक कारखाना, बैंगलोर में एक साबुन कारखाना और बैंगलोर और मैसूर शहर में चंदन के तेल कारखाने शुरू किए गए।

देश भर में आज भी कई कारखानों का नेतृत्व करने वाले लोगों में से अधिकांश लोग इसी कॉलेज के पूर्व छात्र रहे हैं। उनमें से कुछ उल्लेखनीय हैं जीएन रामचंद्रन, हरीश चंद्र, एस रामासेशन, रामचंद्रन, सीएनआर राव और आर नरसिम्हा।

जैसे-जैसे संस्थान आगे बढ़ता गया, रिसर्च के क्षेत्र में यहां कई नए आयाम स्थापित किए जाने लगे। भौतिक विज्ञान विभाग में काम करते हुए होमी भाभा ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) और परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की।

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई भी यहां के ही पूर्व छात्र थे।

सतीश धवन जो कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष भी थे, ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए संस्थान से काफी मदद ली थी।

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