नालंदा यूनिवर्सिटी छटी शताब्दी से ही विश्व की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी थी और यहाँ लोग दूर दूर से पढ़ने आते थे। दुनिया के अलग अलग देशों से स्टूडेंट्स यहाँ पढ़ने आते थे। इसके बाद खिलजी नाम के मुगल शासक ने इस यूनिवर्सिटी को जलवा दिया था। इस लाइब्रबरि में हजारों लाखों की कीमती किताबे थी जो कि जल कर रांख हो गई। तो आइये जानते हैं कि खिलजी ने आखिर ऐसा क्यों किया?

यहां थे 10 हजार छात्र, 2 हजार शिक्षक:

-उस समय हिंदुस्तान पर खिलजी का ही राज था। उस वक्त इस यूनिवर्सिटी में 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनमे टीचर 2000 थे। दरअसल मुग़ल शासक खिलजी भारत को और यहाँ के रीती रिवाजों को नहीं मानता था। उसे केवल अपने इस्लाम और हकिम आदि पर ही विश्वास था।

एक बार बख्तियार खिलजी बुरी तरह बीमार पड़ा। हकीमों पर विश्वास करने वाले इस शासक ने काफी इलाज करवाया लेकिन यह सही नहीं हुआ। तब किसी ने उसे नालंदा यूनिवर्सिटी की आयुर्वेद शाखा के हेड (प्रधान) राहुल श्रीभद्र जी से इलाज करवाने की सलाह दी। खिलजी को इस पर विश्वास नहीं था और वह आयुर्वेद की ताकत को कम आंकता था इसलिए उसने इलाज लेने से इनकार कर दिया।

उसके बाद आयुर्वेद के प्रधान राहुल ने उन्हें कुरान दी और उसे पढ़ने को कहा। उन्होंने इस कुरान के हर पेज पर एक खास दवाई का लेप कर दिया था और जितनी बार खिलजी पेज पलटने के लिए ऊँगली को मुँह में लेकर पेज पलटते वैसे ही दवाई उनके मुँह में जाती और ऐसे करते करते वे ठीक हो गए। लेकिन अहसान फरामोश खिलजी को जब इस बात का पता चला तो उसने सोचा कि आयुर्वेद उनके हकीमों के सामने हार कैसे मान सकता है? तब उसने पूरी यूनिवर्सिटी को ही आग लगा देने का आदेश दिया।

उसने नालंदा के हजारों धार्मिक लीडर्स और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या करवा दी।

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