इंटरनेट डेस्क। बिहार बोर्ड की 10वीं परीक्षा के परिणामों को कल शाम जारी कर दिया गया जिसके बाद बिहार बोर्ड की 12वीं और 10वीं दोनों परीक्षाओं के परिणामों का पूरी प्रक्रिया इस साल के लिए खत्म हो गई। बिहार बोर्ड का नाम सामने आते ही हर किसी के दिमाग में कई तरह के ख्याल आते हैं। पिछले एक दशक से बिहार बोर्ड धांधली, खराब परिणाम, कॉपियों की जांच जैसे कई मामलों में हर बार मीडिया की सुर्खियों में बना रहा है। कभी बिहार बोर्ड के टॉपर फर्जी निकलते हैं तो कभी कॉपियां परिणाम आने से पहले ही कबाड़ी को बेच दी जाती है।

हाल ही में 10वीं के परिणाम आने से पहले एक बार फिर बिहार बोर्ड को पूरे देश में फजीहत का सामना करना पड़ा। बिहार के गोपालगंज जिले के एक सरकारी स्कूल के परीक्षा केंद्र से परिणाम के आने से पहले ही 42 हजार कॉपियां गायब हो गई। मामला सामने आने के बाद अधिकारी आनन-फानन में कॉपियां ढ़ूंढ़ने लगे तो पता चला कि कॉपियां गायब हो चुकी है।

पुलिस में एफ़आईआर करवाने के बाद आखिरकार 2 दिन बाद पता चला कि कॉपियां बोरियों में भरकर रातों-रात ही वहीं के एक कबाड़ी को 8500 रूपये में बेच दी गई। जिसके बाद पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार भी किया है।

बिहार अन्य राज्यों की तुलना में अपने बजट में शिक्षा पर ही सबसे ज्यादा खर्च करता है जिसके बाद भी बिहार शिक्षा व्यवस्था के इस हाल के लिए कौन जिम्मेदार हैं, क्यों हर साल बिहार बोर्ड को बदनामी झेलनी पड़ती है, आइए जानने की कोशिश करते हैं।

बिहार बोर्ड है पूरी तरह से लचर-

हम ये नहीं कह सकते हैं कि बिहार में रहने वाले बच्चे पढ़ने में कमजोर हैं या वो मन नहीं लगाते हैं जबकि ऐसा नहीं है, सबसे बड़ा कारण जो सामने आता है वो है कि बिहार बोर्ड की लचर व्यवस्था। दरअसल बिहार बोर्ड हर साल परीक्षा को लेकर किसी ना किसी तरह के नए नियम बनाता है जिससे छात्रों को परीक्षा में काफी परेशानी होती है।

जिन सरकारी स्कूल के छात्रों को कंप्यूटर तक चलाना नहीं आता है उनको अगर आप ओएमआर शीट भरने के लिए दे देंगे तो वो छात्र परीक्षा में कैसे सफलता हासिल करेंगे।

अगर बिहार बोर्ड की लचर व्यवस्था हर साल इसी तरह से जारी रही तो बिहार में शिक्षा के हालात सुधरने काफी मुश्किल लग रहे हैं।

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