इंदिरा गांधी ने क्यों लागू करवाई थी इमरजेंसी, जानकर रह जाएंगे हैरान
साल 1975 से 1977 तक इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया था और ये एक ऐसा फैसला था जिसने आम जनता के जीवन को बदल कर रख दिया था। अगर आप इमरजेंसी से परीचित नहीं हैं तो बता दें कि आपातकाल तब होता है जब अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण आम जनता के मौलिक अधिकारों को छीन लिया जाता है। अघोषित आपातकाल तब होता है जब सरकार वास्तव में आपातकाल की घोषणा किए बिना आपके मौलिक अधिकारों को छीन सकती है। और यह इंदिरा गांधी के शासनकाल में एक दिन पहले ही हुआ था। हममें से ज्यादातर लोग वर्ष 1975 से 1977 तक केवल अपने आपातकाल के बारे में जानते हैं।
लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इंदिरा गांधी ने आपातकाल क्यों लागू किया ? दरअसल एक मुकदमे के फैसले कारण इंदिरा गांधी को आपातकाल लागू करने पर मजबूर होना पड़ा। हम बात कर रहे हैं 'राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश’ मुकदमे की।
इस मुकदमे में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावों में धांधली का दोषी पाया था। 12 जून 1975 को सख्त जज माने जाने वाले जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने फैसला सुनाया कि अब इंदिरा कहीं से कोई चुनाव नहीं लड़ सकती है और ये रोक उन पर 6 सालों के लिए लगी। ऐसी स्थिति में इंदिरा गांधी के पास राज्यसभा में जाने का रास्ता भी नहीं बचा। उन्हें पीएम पद छोड़ना ही पड़ा और इसके लिए 25 जून, 1975 की आधी रात से इंदिरा ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी।
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इंदिरा गांधी लोकसभा की अपनी पुरानी सीट यानी उत्तर प्रदेश के रायबरेली से एक लाख से भी ज्यादा वोटों से चुनी गई थीं। लेकिन इस सीट पर उनके प्रतिद्वंदी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण ने उनकी इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। यह मुकदमा ‘इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण’ के नाम से चर्चित हुआ।
याचिका में प्रधानमंत्री पर भ्रष्ट प्रथाओं के माध्यम से चुनाव जीतने का आरोप लगाया गया था। यह आरोप लगाया गया कि उसने अनुमति से अधिक पैसा खर्च किया और आगे भी उसका अभियान सरकारी अधिकारियों द्वारा चलाया गया।
हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर भ्रष्टाचार और सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। राजनारायण के वकील शांतिभूषण थे।
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12 जून, 1975 को, न्यायमूर्ति सिन्हा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके किसी भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। लेकिन उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने के लिए 20 दिनों का समय दिया गया था।
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23 जून को इंदिरा गांधी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए दरख्वास्त की कि हाईकोर्ट के फैसले पर पूर्णत: रोक लगाई जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को ही माना और कहा कि गांधी संसद में उपस्थित हो सकते थे, लेकिन जब तक अदालत ने उनकी अपील पर फैसला नहीं सुनाया, तब तक मतदान करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। प्रधानमंत्री के इस्तीफे की उनकी मांग पर उन्हें आश्वस्त किया। इसके अलावा, अब तक कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों की राय थी कि उनका इस्तीफा पार्टी के अनुकूल होगा। कुछ तो यहां तक मानते हैं कि यदि यह फैसला इंदिरा गांधी के खिलाफ न जाता तो देश में शायद ही आपातकाल लगाने की नौबत आती