पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव फिर से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए हैं। एकमात्र नामांकन होने के कारण लालू 11वीं बार राजद अध्यक्ष चुने गए हैं। मंगलवार को उनकी पार्टी की ओर से लालू का नामांकन पत्र दाखिल किया गया था और इस पद के लिए कोई और नामांकन नहीं था इसलिए राजद चीफ की कुर्सी एक बार फिर से लालू को मिल गई है।

ऐसा पहली बार हुआ है जब उनकी ओर से उनके कार्यकर्ताओं ने नामांकन पेश किया है। वर्ष 1997 में राजद के गठन के समय से ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए प्रत्येक बार लालू प्रसाद को ही निर्विरोध चुना जाता रहा है। लेकिन सवाल ये है कि आखिर उनके खिलाफ कोई पर्चा तक भी क्यों नहीं भरता है?

दरअसल राजद पार्टी की पहचान लालू से ही है। उन्होंने इस पार्टी को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाया है। इसलिए सभी इस बात को जानते हैं कि इस पार्टी के लिए लालू यादव से अच्छा चेहरा कोई और हो ही नहीं सकता।

जितनी लालू यादव की लोकप्रियता है उतनी इस पार्टी में किसी की भी नहीं है। यहाँ तक उनके बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव भी इतने लोकप्रिय नहीं है। लालू की राजनीति में अच्छी पकड़ है और उनकी जगह कोई आ जाता है तो जरूरी नहीं कि उसे बिहार से उतना ही प्यार मिले।

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लगातार करीब 30 साल तक बिहार की राजनीति उनके पक्ष या विपक्ष में ही घूमती रही। वर्तमान की साझी सरकार में संक्षिप्त भागीदारी को छोड़ दें तो बिहार की सत्ता से करीब 12 वर्षों तक लालू का राजनीति में अहम योगदान रहा है।

अभी छह माह पूर्व लोकसभा चुनाव के समय वह जेल में थे। लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने विपक्ष की दशा-दिशा तय करने, ट्विटर आदि के जरिये संदेश देने में पूरी सक्रियता दिखाई।

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1995 का विधानसभा चुनाव जनता दल के नाम से लड़ा गया था। 1997 में राजद बना। उसके बाद के 5 विधानसभा चुनावों में राजद का वोट बैंक 18 से 28 फीसदी के बीच रहा। हलाकि धीरे धीरे इसमें गिरावट आई। 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू के साथ मिलकर राजद ने शानदार वापसी की और सत्ता में साझीदार भी बना। हाल ही में पांच विधानसभा क्षेत्रों के हुए उपचुनाव में दो सीट जीत कर राजद ने अपना जनाधार कायम रहने का संकेत दिया।

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