हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। उन्होंने बाल्यकाल में नंदगांव, वृंदावन, गोकुल तथा बरसाना आदि जगहों पर खूब लीलाएं की। मथुरा के राजा कंस का वध करने के बाद उन्होंने द्वारिकापुरी को अपना निवास स्थान बनाया। भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारिका में 36 वर्षों तक राज किया। यहां वह अपनी 8 पत्नियों के साथ सुखपूर्वक रहते थे। इसके बाद सोमनाथ के पास प्रभास क्षेत्र में अपनी देह त्याग दी।

महारानी गांधारी के श्राप के कारण एक दिन सभी यदुवंशी सोमनाथ के पास प्रभास क्षेत्र में यदु पर्व पर एकत्र हुए। वहां सभी मदिरा पीकर एक-दूसरे को मारने लगे। इस तरह श्रीकृष्ण को छोड़कर सभी मारे गए। इस प्रकार प्रभास क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण के समस्त कुल का नाश हुआ था, जिससे वह बहुत व्यथित हो गए थे। तभी से वह भी इसी प्रभास क्षेत्र में रहने लगे थे।

महाभारत कथा के अनुसार, एक दिन वे प्रभास क्षेत्र के वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे योगनिद्रा में लेटे हुए थे, तभी जरा नामक एक बहेलिए ने भूलवश उन्हें हिरण समझकर विषयुक्त बाण चला दिया, जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्रीकृष्ण ने इसी को बहाना बनाकर देह त्याग दी। जिस भील जरा ने तीर मारा था, उसने व्यथित होकर समुद्र में अपने प्राण त्याग दिए।

हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने रामावतार में वानर राज बाली को छुपकर मारा था। यही बाली इस युग में जरा बनकर आया और प्रभु ने अपने लिए वैसी ही मौत चुनी, जैसी उन्होंने बाली को दी थी।

जनश्रुतियों के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण ने जब देहत्याग किया तब उनके बाल बिल्कुल काले थे, उनकी त्वचा झुर्रियों से मुक्त थी। शरीर पर कहीं भी बुढ़ापे के लक्षण नहीं थे।

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